चमत्कार

    शिवालय

    यदि हम ऐतिहासिक अथवा हेरिटेज के दृष्टीकोन से सोचे तो मंदिर का शिवालय जो करीब 111 फुट उंचा है, और जिसमें भगवान के विभिन्न अवतारों की झांकिया का निर्माण जिस कलात्मक ढंग से किया गया है। वो अतुलनीय, देखने योग्य एवं बहोत ही आकर्षक लगती है। दुसरे, यहॉं का वातावरण बडा ही शांत है, रहने-ठरहने तथा भोजन की पुर्ण व्यवस्था है। और सबसे बडी विशेषता है, की कम से कम परिवार के हर सदस्यों का यह कट्टर विश्वास है की यहॉं के भगवान साक्षात प्रतिष्ठित है। और परिवार के सब सदस्य इस स्थान को चारों धाम के बराबर समझते है और ऐसा विश्वास है की, जो भीं आदमी सच्चे मन से इस स्थान के दर्शन के लिए आता है और जैसी अपनी क्षमता नुसार सेवाभाव को दर्शाता है उसको निश्चय ही इसका शुभ फल मिलता है। यहॉं कुछ ठाकूर भगवान के चमत्कार भीं किये हुए है, जिनका में निचे वर्णन कर रहा हू।



    चमत्कार, घटना - तत्पश्चात चमत्कार :
    चमत्कार एक ऐसा शब्द और विषय है, जिसको विश्वमें बहूत से लोग न तो मानते है न ही इसमें विश्वास रखते है। मेरे विचार में चमत्कार एक ऐसी घटना है, जिसका वर्णन करने पर सुनने वाले को अविश्वसनीय और असंभव लगता है। पर में ऐसा समझता हू, जिसके साथ कुछ ऐसी घटना जो अविश्वसनीय और असंभवसी हो तो उसको वो चमत्कार ही कहता है। और जिनके सामने ऐसी घटना घटती हो तो वो भी इसे चमत्कार ही समझते है। परिवार के सदस्य, हमारे ठाकूरजी में बहोत ही श्रध्दा और विश्वास रखते है। इसके चलते में कुछ ऐसी ही चमत्कारीक घटनाओं को यहॉं प्रस्तूत कर रहां हू।
    • पहली जो घटना है, की कडकडाती सर्दी की रात में लाला रुडमलजी को प्यास लगीं और पानी पिने पर भीं उनकी प्यास शांत नहीं हुई और उन्हे बैचेनी होने लगी। उनके मनमें आया की शायद मंदिर में भगवान आज प्यासे है। नियमअनुसार भगवान को रात्रीकाल का शयन कराने के साथ उनके सिराहने पेयजल पुजारी के द्वारा रखा जाता था। श्री रुडमलजी मध्यरात्री में ही अपने सहायक को लेकर के मंदिर में गये और पुजारी को कहा की आप ये देखें की आज ठाकूरजी के लिए पेयजल रखने में शायद भुल होने की वजह से ठाकूरजी शायद प्यास से व्याकूल है। नियमनुसार पुजारीजी सर्द मध्यरात्री में वो भी ठंडे पानी से स्नान कर के (हालॉंकी पुजारी जी ने तकलीफ तो महसूस की होगी। लेकीन सेठ जी को मना भीं नहीं कर सकते थें।) भगवान के ग्रह के द्वार खोले और पाया की उस रात्री वास्तव में पेयजल रखना भुल गयें थे।
      मुर्तीया चोरी की खबर लोकल अख्बारोमे भी छपी.
    • अब में ऐसी घटना का वर्णन कर रहा हू जो एक भयंकर दुर्घटना थीं लेकीन तुरन्त बाद में वही एक सुखद स्थिती में चमत्कारिक रुप से बदल गयीं। साल 2005, जनवरी के अंत मे मंदिर से मध्यरात्री ठाकूरजी श्रीराधाकृष्ण की मुर्तीया चुरा ली गयी. परिवार के सभीं सदस्यों को बहूत ही ज्यादा दुःख एवं बेनैची हूई । ठिक उसी दिन सुबह से ही ठाकूर जी की चरणपादूका रखकर निरंतर पुजा विधीविधान से जारी रही । परिवार के सभीं सदस्यों को यह विश्वास था की, निश्चय ही ठाकूरजी की मुर्तीया वापस मिलेंगी । करीब देढ महिने तक मुर्तीयों का नहीं मिलना और किसी प्रकार का सुराग न मिलने की स्थिती में, बहोत विचारविमर्श के बाद स्वर्गीय भाई श्री ओमप्रकाश जी एवं मै यानी रविंद्रकुमार 14 मार्च 2005 को मुम्बई से पश्चिम एक्सप्रेस से (ट्रेन नंबर 2925) पहले जैसी ही दुसरी मुर्तीयोंका आॅर्डर देने के लिए मथुरा के लिए रवाना हुए। गाडी नवसारी स्टेशन (गुजरात) में गाडी रुकी और मै प्लेटफार्म के उपर उतर गया। गाडी चल पडी और बहोत ही मुश्किल से मैने दौडकर गाडी में दरवाजे के उपर के पायदान पर चढा ही था और तब तक गाडी प्लेटफार्म से सौ-दो सौ मीटर दुर निकल चुकी थीं। और चुकी गाडी इलेक्ट्रिक ट्रेन थीं जो कुछ ही सेकंदो में स्पीड पकड ली थीं। और बसंती मौसम होने के कारण हवां बहोत जोरो से चल रहीं थी, तो मै गाडी के गेट से गाडी जीस लाईन पर दौड रहीं थीं, उससे सात-आठ फूट दुर कच्ची जमीन पर छिटककर तिनके की तरह जा गिरा। गाडी के पिछले डब्बो के यात्रीयों ने तुरंत गाडी को चेन से रोका और मै समझता हू, उन्होंने पॉंच-सात मिनट में वहॉं से उठाकर मेरे को मेरी सिट पर पहूचा दिया। स्वभाविक रुप से वहॉं भिड तो लगनी ही थीं। गाडी वहॉं करिब आधे-पौने घंटे तक रुकी रही। गाडी रुकने पर तुरंत स्टेशन से एक कोन्स्टेबल बिरेश उपध्याय अपने साथी के साथ आया और मेरा स्टेटमेंट लिया। और उसने मुझे वहॉं उतर जाने के लिए कहॉं। गिरने के बाद मुझे कम से कम दस मिनट तक कोई होशहवास नहीं था। अब चमत्कार ये हुआ की मुझे रत्तीभर भीं किसी किसम की चोट नहीं लगी, महज कमर में थोडा दर्द अवश्य हुआ। और मैने कहॉं की चुंकी मुझे कुछ भीं नही हुआ है, और उसने जरुरी लिखापढी कर के गाडी को जाने दिया। यहॉं ये जिक्र करना भीं आवश्यक सा है, गाडी चलने पर सहयात्रीयोंमे से एक संभ्रांत प्रौढ महिला मेरे पास बैठी और उसने स्वर्गीय श्री ओमप्रकाशजी से पुछा की, हम कहॉं और किस लिए जा रहें है। तो भाईसाहब ने मुर्तीयों की चोरी को बताते हुए कहॉं की हम दुसरी मुर्तीयों का आॅर्डर करने के लिए मथुरा, वृंदावन जा रहें है। तो इसपर उस भद्र महिला की टिपणी ‘की आज तुम्हारे छोटे भाई को फांसी होनेवाली थीं।’ (मरने वाले थें।) लेकीन आपकी रक्षा तो खुद आप के सर पे भगवान बैठकर कर रहें थे इसलिए आप का बाल भीं बांका नहीं हुआ। क्या इस टिपणी अथवा घटना को भुला जा सकता है? आज भीं यदी मैं अगर कभीं जब इस घटना का किसी को वर्णन करता हु, तो भय के कारण मेरा रोम-रोम कॉंप उठता है। क्योंकी मैने मौत का एहसास किया है और सामने खडा देखा है। क्या यह चमत्कार नहीं है? घटना की प्रमाणिकता का विवरण नवसारी स्टेशन पर रिकार्ड है।
      मुर्तियो की चोरी के बाद पता एवं बरामद कराने वाले को १ लाख रुपया इनाम देणे का घोषणापत्र उस इलाके मे बटवाया गया
    • इसी घटना से सम्बंधीत दुसरी चमत्कारी जो बात हुई, वृंदावन में दुसरी मुर्तीयोंका आॅर्डर देने के पश्चात, चुकि हमारे परिवार के सदस्यों में यह बहोत ही दृढ विश्वास था की हमारी चोरी की गयी हुई ठाकूरजीकी मुर्तीयॉं अवश्य मिलनी चाहिए और विचार कर एक चान्स और लिया गया। और इस हेतु पोस्टर एवं पर्चे छपवायें गये, जिसमें हमारे ठाकूरजी का पता बतानेवाले को 1 लाख रुपया इनाम देनेका घोषीत किया गया। गॉंव और आसपास के क्षेत्रमें बाटें गयें एवं दिवारों पर चिपकायें गये। इधर वृंदावन से आॅर्डर दी गयी मुर्तीया 19, 20 अप्रेल 2005 को डिलवरी दे दी गयीं, साथ ही हमारे भगवान की लिला या कहीये तो चमत्कार देखीयें की 21, 22 अप्रेल 2005 को चोरी करनेवाले गिरोह के एक सदस्य ने इनाम के लालच में मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल के प्रिंसिपल को, इनाम का भरोसा देने के पश्चात अगले दो-तीन दिन में काफी मुशक्कत के बाद मुर्तीया बरामद कर ली गयी। अप्रेल 2005 की आखरी तारीख को कोर्ट से अपने को मुर्तीयों की डिलिवरी मिल गयीं । परिवार के सदस्यों के बीच की पुरानी या नयी मुर्तीयों की प्राणप्रतिष्ठा करवानी चाहीये ऐसी भिन्न-भिन्न रायें थीं । काफी वाद विवाद के  बाद पुरानी मुर्तीयों की प्रतिष्ठा करवाने का ही निश्चय किया गया, और इस तरह मई के पहले सप्ताह अक्षय तृतीया को पुनः प्राणप्रतिष्ठा बहूत ही विधीविधान और हर्षोउल्हास से एक हफते तक पुजा पाठ के बाद की गयीं । इस पर काफी खर्चा भीं हुआ । यह सब कार्य वृंदावन से पॉंच विद्वान पंडितों ने आकर करवाया, एवं परिवार के सैकडो सदस्यो ने भाग लिया । चोरी की गयी मुर्तीयों का पता बतानेवाले युवक को एक लाख रुपयों का इनाम पुलिस डी.सी.पी. की उपस्थिती में दिया गया।
      मुर्तीया बरामद होणे पर लोकल अखबार की खबर
    • ये उपर की घटना भगवान की मुर्तीयों की चोरी के बाद और प्रतिष्ठा होने के बीच के समय की है। अब सज्जनों मैं प्रतिष्ठा कराने के दौरान एवं प्रतिष्ठा समाप्त होने के बाद की घटना का वर्णन कर रहा हू। मेरा ट्रान्सपोर्ट का व्यापार है। और हमारे अपने ट्रक (Trucks & Vehicles) है। मैं अपनी धर्मपत्नी के साथ दो या तीन मई 2005 को हमारे बेरी मंदिर में पुनः प्राणप्रतिष्ठा के हेतु भाग लेने के लिए गया। मेरे जाने के दुसरे दिन मुम्बई आॅफिस के सामने हर रोज रात को जो ट्रक खाली होते थें, वहॉं आॅफिस के सामने हाईवे पर खडें कर के ड्राईव्हर अपने घर चले जाते थें, टाटा से लिया हुआ नया ट्रक 11 लाख की किमत का चोरी हो गया। मैं बेरी मंदिर से प्राणप्रतिष्ठा की पुजा में भाग लेकर वापस मुम्बई 12 या 13 मई 2005 को आया। आने के बाद उसी रोज शाम को मेरे पुत्रों ने मुझे ट्रक चोरी की बात बतलाई। मैने पुछा की, जब हर रोज मोबाईल टेलिफोन पे बात होती थीं, तो तुमने मुझे क्यों नहीं बतलाया? उनका जबाब था, की आप को चिंता एवं परेशानी होती और भगवान की पुजा ठिक से न करा पाते इसलीये नहीं बतलाया। रात बहोत ही बेचैनी में कटी। मैं नियमनुसार सुबह का स्नान कर के मेरे घर में जो मंदिर है, उसमें ठाकूरजी की मुर्तीया विराजमान है, पंद्रह मिनट के लिए पुजा करता हॅंू। पुजा करते वक्त मैने मन ही मन भगवान से पुछा की, हे भगवान इधर में आप की स्वच्छ मन से पुजा करा रहा था और उधर आप ने मेरी गाडी चोरी करवाकर के मुझे चुना लगवाया। क्या यही मेरा पुजा करवाने का इनाम है? अब शायद ही इस बात पर कोई विश्वास करेगा की, पुजा के दौरान मेरे मोबाईल की घंटी बजी और हमारे आॅफिस के सिनियर मोस्ट स्टाफ ने फोन पर मेरे परिवार के सदस्य को, जिसने भीं फोन उठाया मेरे को उसी समय तुरन्त बात करने के लिए कहॉं, मैने नियम तोडकर की कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हुई इस भय से बात की और उसने मेरे को बतलाया की अभीं अभीं महसाना गुजरात से एक ट्रान्सपोर्ट के दलाल का फोन उसके फोन पर आया है और हमारी चोरी की गयी गाडी का नंबर देते हुए ये पुछा की आपका ड्राईव्हर उससे गाडी में माल भरवाने के लिए बोल रहा है, और इजाजत ले रहा था की, माल भरवा दूॅ क्या? तब मेरे निर्देशानुसार हमारे इन स्टाफ ने उसे सारी बात बतलाई और किसी भीं तरह चोरी की गयी इस गाडी को वहॉं से हिलने भीं न दे और दो घंटे में हमारा आदमी वहॉं पहूॅंच जायेगा। और जैसा  भीं वो इनाम वगैरा चाहेंगे, वो देकर गाडी ले आये। दलाल के पास खडा ड्राईव्हर यह बात सुनने पर तुरंत वहा से गायब हो गया और इधर हमारे दो-तीन आदमी अहमदाबाद से कार गाडी में दो घंटे के अंदर अंदर महसाना पहूॅंच गये। दलाल ने हमसे कुछ नहीं लिया और गाडी हमारे आदमियों द्वारा ले ली गयी। हमारी गाडीयों पर हमारे आॅफिस तथा स्टाफ मॅनेजर के टेलिफोन नंबर लिखें रहते है। चोरी की गयी गाडी की एफ.आय.आर. तथा मिलने पर उसकी सुचना थाने में दर्ज है।
    • नंबर ३ पर जहा ठाकुरजी कि मुर्तियो कि चोरी के बारेमे जिक्र किया है, उस प्रसंग मे आगे बढते हुये, एक और घटना का उल्लेख बहोत हि अनिवार्य हो जाता है, जो कि बहोत हि महत्वपूर्ण है। जब मुर्तीया २८-२९ अप्रेल २००५ को कोर्टसे वापस मिली, और जिनकी पुर्नरस्थापना कि पूजा ५ या ६ मई २००५ से शुरू होनी थी। तो इस बीच के समय मे वो मुर्तीया करीब ७-८ दिन तक आदरणीय स्वर्गीय श्री हरगुलालजी के सुपुत्रो के पास हापुड (यु.पी.) मे उनके निवास स्थान पर रही और उनको जो यह सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसको किसीपर भी बहोत ही गर्व होगा, क्योकी ऐसा सौभाग्य टाटा-बिरला को ही मिलता है। मै समझता हु, यह सिर्फ उनकी और उनकी सच्चे दिलसे ठाकुरजीकी सेवा की गयी का भगवान ने खुद वहा उनके घरमे निवास करके उनको प्रमाणपत्र दिया है। मै इसको सबसे बडा चमत्कार मानता हु
    हालांकी बहोत से आदमीयों को तो अब ये सब उपर लिखी घटनाओंको पढ के भीं अविश्वसनीय लगेंगी लेकिन मेरे लिए अथवा और जो दुसरे आदमी इन घटनाओं से परिचित है, वो तो इसे चमत्कार ही मानते है। मैं यहॉं ये खास कर अपने परिवार के जो बहोत ही बढा है, इस लेख के द्वारा ये बताना चाहता हॅंू की सज्जनो और भाईयों, हमारे मंदिर के ठाकूरजी साक्षात एवं जागृत है और जो सच्चे मन से सेवा करता है एवं दर्शन के लिए आता है, देरी सवेरी उसकी इच्छापूर्ती अवश्य होती है।