त्योहार एवं पर्व
श्री
राधाअष्टमी, अन्नकुट, शिवरात्री एवं श्रावणमास में झुला उत्सव आदि वर्ष में मनायें
जाते है। इसमें मुख्य रुप से प्रत्येक साल श्रावणमास की शुक्लपक्ष तिथी सप्तमी से एकादशी
(मिसाल के तौर पर, अब की वर्ष 2014 में 3/8/2014 से 7/8/2014 तक श्री राधाकृष्ण की
सम्पुर्ण 100 टंच निर्मित अंदाज 6 फूट बाय 4 फूट किमती झुलेमें दर्शन देते है और झुले
से थोडासा बाहर की तरफ निचे मे विभिन्न प्रकार की लिलाएं निकाली जाती है और रात के
समय मंदिर की दिवारों और छत पर जो कांच एवं शिशेकी कलात्मक ढंग से जो नक्काशी एवं कारिगीरी
की गयी है, बिजली की रोशनी में देखने से एक अलग ही किस्म की अनुभूती होती है। स्थानिय
लोग तो अब इसको कंचमंदिर के नाम से भीं पुकारने लगे है। आखीर में अगले दिन छटवे रोज
तिथी द्वादशी को दोपहर में भंडारा लगकर शामतक समापन हो जाता है। जैसे की मंदिर का नाम
गॉंव में रुडमल मंदिर के नाम से प्रसिध्द है, उसी तरह से हमारा पुरा परिवार ‘रुडमल
परिवार’ के नाम से जाना जाता है। जिसके सदस्य आज देश के विभिन्न शहरों में रहते है
और इस श्रावणमास के झुलाउत्सव के अवसर पर देढ सौ-दो सौ की संख्या में एवं उनके रिश्तेदार
और सम्बंधी वहॉं एकत्रित होते है और गॉंव और आसपास के लोग सैकडो / हजारों की संख्या
में हर रोज मंदिर में दर्शन के लिए आते है। और हर वर्ष इस अवसर पर विद्वान पंडितों
द्वारा श्री भागवत कथा आदी का आयोजन भीं होता है। साल 1992 में मंदिर की स्थापना के
शताब्दी का पर्व अबतक का सबसे बडा धुमधाम से मनाया गया त्योहार है। इस जगह का महत्तव
तथा ठाकूरजी के आशिर्वाद का क्या प्रभाव है, उसका एक उदाहरण इस प्रकार है की, देश-विदेश
प्रसिध्द संत महात्मा जो साल 1990 से 2000 के बीच उनके अपने जीवन की शुरुआत में यहॉं
आकर श्रावण झुला उत्सव के मौके पर सात-सात रोज तक उनके द्वारा भागवत कथा की गयी है।
मेरे ज्ञान के अनुसार महाराज श्री कृष्णचंद्र ठाकूरजी, वृंदावन निवासी, महामंडलेश्वर
श्री कृष्णचंद्रजी, ग्वालियर निवासी एवं शांतीदूत श्री देवकीनंदन ठाकूरजी महाराज, जो
आज आप बराबर टी.व्ही.के संस्कार, आस्था एवं साधना आदी धार्मिक चैनलोंपर देख सकते है।
यहॉं आकर अपने मुखारविंदसे बहूत ही सुंदर और मिठी भाषा में कथा की हुई है।