मंदिर निर्माण एवं परिवार का परिचय
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शिवालय का एक दृश्य |
श्योदयाल मल के तीन सुपुत्र श्री गिरिधारीलाल, श्री
रुडमल और श्री सुरजभान हुए। ये सब अग्रवाल वर्ग एवं सिंघल गौत्र के मध्यम वर्ग के व्यापारी
थें। मुख्य रुप से इनका व्यापार खांडसरी एवं अनाज का व्यापार था। इनका व्यापार कराची,
मुम्बई, ब्यावर (राजस्थान) आदि स्थानों पर था। ये तिनो भाई बहोत ही धार्मिक विचारों
के थें एवं इनका रहनसहन बहोत ही साधारण था। इन तिनो भाईयों ने मिलकर इस मंदिर का निर्माण
श्री रुडमलजी की रेखदेख में करवाया गया। और इस तरह गॉंव में एवं आसपास के क्षेत्र में
रुडमल मंदिर के नाम से ही प्रसिध्द होता चला गया।
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मंदिर के अंदर का एक भाग |
मुख्य रुप से मंदिर के अंदर श्री
राधाकृष्ण की एवं शिवजी भगवान की स्थापना एवं प्राणप्रतिष्ठा अंग्रेजी साल 1892 (यानी
आज से करीब 122 साल पहले) की गयी। उस समय के विद्वान पंडित श्रीधर जी ने स्थापना करवाई
और यह सोचकर उनके निर्देश के अनुसार कि नियमित रुप से इस मंदिर की पुजा एवं अर्चना
निरंतर लंबे समय तक चलती रहे, विद्वान पंडीत जी की दुरदृष्टी के सोच के अनुसार बहोत
ज्यादा खेती की जमीन मंदिर के नाम कर दी गयी। श्रीगिरिधारीलाल जी सन 1895, श्री रुडमलजी
सन 1902 एवं श्री सुरजभान जी का सन 1909 में स्वर्गवास हो गया। बाद में इन तीन भाईयों
के दस पुत्रों ने मिलकर 25 जुलाई सन 1915 को एक ट्रस्ट की स्थापना कर जिला रोहतक में
ट्रस्ट की रजिस्ट्री करवाई और शुरुआत में ही काफी खेती की जमीन, भगवान के लिए सोने
एवं चांदी के आभुषण और उस समय में करीब सात-आठ हजार रुपया ट्रस्ट में दिया। जिससे मंदिर
का खर्च नियमित रुप से निकलता रहें। जैसा की उपर कहा है की, तिनो भाई बहोत ही धार्मिक प्रवर्ति के थे। और उनका रहन सहन बहोत ही साधारण था। जिसका उदाहरण सिर्फ इस बात से
दिया जा सकता है की, कराची और मुम्बई जैसे बडें शहरों में व्यापार होते हुए भीं तिनो
भाईयों में से किसी एक का भी कोई फोटो उपलब्ध नहीं है। उनकी सादगी का दुसरा उदाहरण
यह है की मंदिर का जब निर्माण हुआ, तो उसके मुख्य मंदिर में पुरा मार्बल / संगमरमर
का काम है एवं वहॉं पर जो बडें बडें शिशे, झाड फाणुस एवं छोटे बडे लॅम्प, जो की बेल्जियम
एवं फ्रान्स निर्मित सजावट की वस्तुए इस्तेमाल की गयी। और इन तिनों भाईयों के, जो निवास
स्थान थे उनमें एक नग संगमरमर का भीं प्रयोग नहीं किया गया। वहॉं पर श्री हनुमान जी
के मंदिर की स्थापना उसी समय की गयी है। मंदिर के परिसर के अंदर श्री अंबे माता (श्री
दुर्गा देवी) का निर्माण सन 1984 में किया गया है। यह सब स्थान आप दिये हुए फोटो मे
भलिभाती देख सकते है। मंदिर के दायें हाथ में बाहर पक्के मिठें जल के कुऐं का और
उसके पिछे पाठशाला / धर्मशाला का भीं निर्माण कराया गया। उस समय हमारा भारत देश अंग्रेजों
के आधिन था तो उस समय दिल्ली डिविजन के कमिशनर सुप्रिटेंडेंट के निर्देश पर पंजाब
प्रांत के माननीय लेफ्टीनंट गवर्नर ने सनद (सर्टिफिकेट) दिनांक 6 सितंबर 1893 को उस समय की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से जारी किया। उसकी भीं फोटो प्रिंट हम यहॉं प्रकाशित
कर रहें है।
हालांकी गॉंव बेरी, सौ-सवासौ वर्ष पहले तो बहूत ही पंद्रहसौ-दो हजार की
जनसंख्या का छोटासा गॉंव था। और आज भीं जनसंख्या करीब बीस-पच्चीस हजार ही होंगी। लेकिन
मंदिरों के हिसाब से ये इतना प्रसिध्द एवं महत्त्वपुर्ण स्थान है की हरयाणा सरकार के
आर्चोलोजिकल डिपार्टमेंट ने इस गॉंव को छोटे काशी, मथुरा नाम तक दिया हुआ है। डिपार्टमेंट
चन्ढीगढ-पंचकुला के निर्देश पर सन 2007-08 में वहॉं के क्युरेटर डायरेक्टर श्री राजेंद्रसिंह
दहिया वहॉं मंदिर में आये के ये मंदिर और शिवालय ‘हेरिटेज’ के दर्जे में आता है तो
जा कर इन्क्वायरी की जावे की क्या अवस्था है। चुकि मंदिर में पुरी व्यवस्था थीं और
पुर्ण सुचारु रुप से चल रहा है, तो डिपार्टमेंट किसी प्रकार की भीं दखल नहीं करेगा,
ऐसा बतलाया गया। विशेष बात ये है की, इस मंदिर की पुजापाठ का आधार वृंदावन के जगप्रसिद्ध श्री बिहारीजी के मंदिर की भांती है। और ये हमारे भगवान ठाकुरजी का आशिर्वाद है की
आज तक उसी भांती निरंतर बिना किसी बाधा के चली आ रही है।